मेरा भारत बदल रहा है! (भाग 2)
जिन पर जिम्मा था खुशहाली का,
वह जुटे रहे अपनी खुशहाली में,
स्वास्थ्य शिक्षा के चक्कर में,
कहाँ वह हमको अब दिखते हैं,
रोजमर्रा की दिनचर्या में,
वे नाता अब कहाँ रखते हैं,
लुट खसोट की भागदौड़ में,
ये ऐसे मशगूल हुए हैं,
जन जन बात करे अपने सुख दुख की,
वे अपनी समृद्धि में जुटे हुए हैं,
अमृत काल ये चल रहा है,
मेरा भारत बदल रहा है।
जीवन जीने की जद्दोजहद में,
हम जैसे तो ऐसे ही मर खप जाते हैं,
एक ही मौका पाकर ये तो,
करोड़ पति से ये बन जाते हैं,
अपना तो जीवन संघर्ष जारी है,
इनकी अपनी सम्बृद्धी की तैयारी है,
अमृत काल जो चल रहा है,
मेरा भारत बदल रहा है।
बदलाव भी निश्चित आया है,
रहन सहन से खान पान तक,
पैदल पगडंडी से हाटमिक्स तक,
सरपट दौडते वाहनों के कोला हल तक,
भागदौड़ से मरखपने तक,
दुनिया को मुठ्ठी में करने की चाहत तक,
अमृत काल के इस स्वर्णिम युग में,
मेरा भारत बदल रहा है।
नव तकनीक के इस दौर में,
डिजिटल इंडिया के इस शोर में,
चिट्ठी पत्री दरकिनार कर,
मोबाइल की चकाचौंध पर,
पाक्षिक और साप्ताहिक को बिसरा कर,
दैनिक समाचार पत्र छोड़ छाडकर,
टी वी रेडियो से आगे बढकर,
सोसल मिडिया में आकर,
प्लांट की हुई खबरें सुन सुनकर,
क्या सच है क्या झूठ है,
मुश्किल हो गया करना अंतर,
अमृत काल के इस महा यज्ञ से,
मेरा भारत बदल रहा है।
बदल गया है यह समाज हमारा,
बदल गया है घर परिवार हमारा,
रिश्तों में नहीं रही वह गर्माहट,
तार तार होते रिश्तों की आहट,
अपने अपने पूर्वाग्रहों की चाहत,
खत्म होती वसुधैव कुटुम्भकम की राहत,
ना जाने कहाँ पहुँच पाने कसमाहट,
बहुत कुछ खोकर भी न संभल पाने तक,
मेरा भारत बदल रहा है,
यह कैसा अमृत काल चल रहा है,
मेरा भारत बदल गया है,मेरा भारत बदल गया है।