मेरा परिवार घर संसार
मेरा परिवार घर संसार
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स्वर्गतुल्य मेरा परिवार है,
मेरे जीवन का आधार है।
मेरा मान और सम्मान है,
खुशियों से भरा संसार है।
कुछ नही है पहचान मेरी,
मेरा नीड़ ही स्तंभ द्वार है।
बुजर्ग बरगद के तरुवर,
बाल बच्चे फल अंबार है।
भार्या घर की जड़ समान,
भर्या कर दे सर्व निसार है।
नफरतों से टूटते दरवाज़े,
प्रेम ही निलय का सार है।
गुलों से है चमन हरा भरा
चमन में खिली बहार है।
स्नेह बरसता बड़ों से सदा,
छोटों को मिलता प्यार है।
रिस्तों की है नपाठशाला,
नेह का सजता बाजार है।
माँ की गोद होती ईश्वरीय,
पिता के पैरों में दरबार है।
भाई,बहन और दादा,दादी,
चाके,ताये का भी दुलार है।
चाची, ताई की आशीषें हैं,
बुआ,फुफड़ का आभार है।
मनसीरत परिवार मूल है,
सब के जोड़ता टूटे तार है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)