“मेरा दोस्त, मेरा अज़ीज़ “शानू” नहीं रहा!” बोले संगीतकार नदीम
कुछ दिन पहले ही पहले संगीतकार श्रवण राठौड़ का परिवार कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। पहले श्रवण चपेट में आये तत्पश्चात उनके पत्नी और बेटे भी संक्रमित हो गए थे। इसके उपरान्त परिवार को सभी लोगों को अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती करवाया गया था। दुर्भाग्य देखिये, जब संगीतकार श्रवण ने मुंबई के एस.एल. रहेजा अस्पताल में अपनी अन्तिम सांस ली, तब उनका परिवार उनके पास नहीं है। पाठकों की जानकारी के लिए बता दें—श्रवण राठौड़ के दोनों बेटे संजीव और दर्शन भी म्यूजिक इंडस्ट्री में एक जोड़ी के रूप में लोकप्रिय हैं। श्रवण राठौर हाल ही में कुंभ मेले में शामिल हुए थे जिसके बाद उनकी तबियत खराब हो गई थी। दरअसल मशहूर गायक उदित नारायण ने श्रवण की मौत पर कुंभ जाने के बाद उनसे मोबाइल पर बात हुई थी और तब श्रवण ने बताया था कि वो कुंभ में पवित्र स्नान के लिए आये हैं। उदित ने कहा, “यदि मुझे पहले पता होता तो मैं भी श्रवण भाई के साथ कुम्भ स्नान के लिए जाता! ईश्वर उन्हें मोक्ष प्रदान करे!”
श्रवण को मृत्यु से दो दिन पहले ही गंभीर हालत में हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। कोरोना संक्रमण के अतिरिक्त श्रवण कई अन्य चिकित्सीय सम्बन्धी समस्याओं से भी जूझ रहे थे, अतः वह वेंटिलेटर पर थे। जहां गुरुवार 22 अप्रैल की रात 9.30 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली। मुंबई के एस.एल. रहेजा अस्पताल की डॉ कीर्ति भूषण ने इस खबर की पुष्टि की और बताया कि श्रवण राठौड़ का कोरोना के चलते अनेक अंगों ने काम करना बन्द कर दिया था, जिस कारण उनका निधन हो गया। उन्हें हृदय संबंधित गंभीर समस्याएं थीं तथा मधुमेह भी था। संगीतकार श्रवण 66 वर्ष के थे। 90 के दशक में नदीम-श्रवण की जोड़ी बेहद मशहूर थी. उनकी हिट फ़िल्मों में आशिकी, दिल है कि मानता नहीं, साजन, परदेश, सड़क समेत कई और फ़िल्में शामिल हैं।
हालांकि, गुलशन कुमार की हत्या के अब उपजे विवादों में नाम आने के बाद 2000 की शुरुआत में नदीम देश से बाहर चले गए और संगीतकार नदीम-श्रवण जोड़ी दूर हो गई। संगीतकार के रूप में श्रवण की आख़िरी फ़िल्म 2009 में “डू नॉट डिस्टर्ब” थी। श्रवण के निधन पर उनके दोस्त और जोड़ीदार नदीम सैफी भी बेहद दुखी हुए और फूट-फूट कर रोने लगे और रोते-रोते ही बोले, “मेरा दोस्त, मेरा अज़ीज़ “शानू” नहीं रहा! हम दोनों ने एक साथ ही पूरी ज़िन्दगी देखी। हमने अपनी सफलताओं और विफलताओं के एक-दूसरे के साथ गले लगकर बांटा। हम दोनों एक-दूसरे का सहारा पाकर ही बड़े हुए। हम पर लाख विपदाएँ टूटीं, पर हमारा संपर्क कभी नहीं टूटा। मौत के बाद भी दुनिया हमें अलग नहीं कर सकती। संगीतकार के रूप में श्रवण के योगदान को दुनिया कभी भुला नहीं सकती। मैं इस बाद से ज़्यादा दुखी हूँ और खुद को असहाय महसूस कर रहा हूँ क्योंकि मैं अपने प्यारे दोस्त शानू (श्रवण) के परिवार की मुश्किल घड़ी में मदद करने और उसे अन्तिम सफ़र में विदाई देने के लिए नहीं पहुंच सकता। मुझ सा अभागा कौन होगा?”
अब कुछ बातें इस सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी नदीम-श्रवण के बारे में। नदीम जी का पूरा नाम नदीम अख़्तर सैफ़ी है तो श्रवण जी का पूरा नाम श्रवण कुमार राठोड़ था। 1973 में पहली बार एक दूसरे से मिले नदीम-श्रवण ने भोजपुरी फ़िल्म “दंगल” से अपने संगीत करियर की शुरुआत की थी जिसमें रफ़ी साहब का गाया गीत काफ़ी हिट हुआ था। तत्पश्चात अस्सी के दशक में संघर्ष करते हुए कुछ छोटी-छोटी फ़िल्में कीं, लेकिन 1990 में आई महेश भट्ट द्वारा निर्देशित फ़िल्म “आशिक़ी” से उन्हें बड़ी पहचान मिली। जो बॉलीवुड के इतिहास में आज तक भी सर्वाधिक बिकने वाली संगीत एल्बम है। इसके बाद सन 1997 ई. तक उन्होंने कई फिल्मों में लाजवाब काम किया, और अग्रणी संगीतकारों में स्थान प्राप्त किया।
1997 में गुलशन कुमार हत्याकांड में नदीम सैफी का नाम संदिग्धों की सूची में आने से, वे कुछ समय के लिए संगीत से दूर रहे। 2000 ई. में आई फ़िल्म “धड़कन” से नदीम-श्रवण ने एक बार फिर बॉलीवुड में वापसी की, और उसी बुलन्दी को बरक़रार रखा। अगले पाँच बरसों तक दोबारा काम करने के बाद 2005 ई. की फ़िल्म “दोस्ती” के बाद दोनों जोड़ी के रूप में जुदा हो गए। इस जोड़ी ने चार फ़िल्मफेयर, 2 स्टार स्क्रीन, 1 ज़ी सिने और ‘राजा’ फ़िल्म के लिए एक विशेष सम्मान प्राप्त किया। 1991 ई. से 1993 ई. तक जब नदीम-श्रवण जोड़ी ने लगातार तीन सालों में तीन बार फ़िल्मफेयर सम्मान प्राप्त किया तो शंकर-जयकिशन (1971 ई. से 1973 ई.) तथा लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (1978 ई. से 1981 ई.) के बाद ऐसा करने वाले वह तीसरे जोड़ी संगीतकार थे। जो सदैव संगीत इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। ईश्वर श्रवण की आत्मा को शान्ति दे।