मेरा तितलियों से डरना
एक समय था जब मैं तितलियों से बहुत डरा करती थी,मेरे बड़े भाई मुझे कहते थे….बड़ी बड़ी जो तितलियां होती हैं वो सारी डायन हैं, छोटे बच्चों को अकेला देखकर उनको खा जाती हैं,उनकी ये बात सुनकर मुझे बहुत डर लगता था। जब भी मैं बड़ी तितलियों को देखती आँखे बंद कर लेती।एक बार मेरे बड़े भाई मुझे अकेला छोड़ अपने दोस्तों के साथ खेलने चले गए,ऐसा पहली बार था जब वो मुझे नहीं ले गए, मैं उनको ढूंढती हुए उस पास के बागीचे में चली गई जो BCCL कर्मचारियों और ओमप्रकाश कुँवर ने लगाया था,उसमें तरह तरह के फूलों के पौधे जैसे अपराजिता, कनेर, उड़हुल,सदाबहार और भी कई तरह के खूबसूरत सजावटी पौधे थे।।हम बच्चों का एक पसंदीदा पेड़ भी था ..शहतूत का गर्मियों में शहतूत पक पक कर गिरते थे और हम सब उनको बीनकर खाते। मैंने देखा मेरे भाई और उनके दोस्त उस बागीचे में नहीं थे ,मैंने सोचा वो लोग जरूर BCCL वालो की गैराज में खेल रहें होंगे ,जैसे ही उधर जाने के लिए मैंने अपना कदम बढ़ाया मैंने देखा एक बड़े से सफेद फूल के पौधे में बहुत सारी बड़ी बड़ी तितलियां बैठी हैं उनको देखकर मेरा मैं डर गयी,और वहीं खड़ी हो गई,मेरा बालमन में तरह तरह के विचार आने लगे मैं सोचने लगी ये सब मिलकर अब मुझे खा जायेंगी या उड़ाकर दूर ले जायेंगी फिर कोई मुझे नहीं ढूंढ पायेगा, बहुत देर तक मैं वहाँ जमी रही पर कभी आँखे बंद करती क़भी चुपके चुपके खोलकर देखती कि वे चली गई क्या।फिर मैंने बहुत साहस किया और आँखे बंद करके आगे की तरफ दौड़ गयी,ताकि अपने भाई को ढूंढ सकूँ, वो मुझे मिले कि मिले उस जहग मुझे याद नहीं ,बस इतना सा याद है उस दिन मैं पीछे नही हटी थी मेरे बालमन ने अपने डर को पीछे छोड़ना सीख लिया था,इसके बाद जीवन में बहुत से डर का सामना किया।।आज भी जब मैं किसी चीज़ से डरती हूँ तो याद करती हूँ …मेरा तितलियों से डरना।।