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16 May 2023 · 1 min read

मूडी सावन

रोज रोज की ड्यूटी कैसी
मेरी ही क्यों है जिम्मेदारी
अब के क्यो कर बरसू मैं ही
मेरा बिलकुल मूड नहीं है

मूड ही से जगता मानुष
खाना मूड जमे जब खाता
बिना मूड ना पढता लिखता
बनें मूड तब सैर को जाता

सागर से उन्मुक्त जोश लिए,
सफर सुहाने मैं चला था
हरियाली, जंगल की सी चदरिया
दिखने को मन तरसा था

दुखी हो कहीं फट पडा तो
कहीं बरसाने को दिल ना हुआ
मूडी जो थी इंसा की फितरत
मुझ पर भी उसका रोग चढा

शायद मेरे मूडी रवैये से
सोया हर वो शख्स जगे
अपनी हर जिम्मेदारी का अब
बिना मूड के बोध जगे

मैं मेहमां बस तीन मास का
चाहूँ कुछ सत्कार मिले
जहाँ से गुजरू लेके बादर
लहलहाती पेडो की शाखाएं दिखें

Language: Hindi
3 Likes · 189 Views
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