मुहब्बत का ईनाम क्यों दे दिया।
गज़ल
122…..122……122…..12
मुहब्बत का ईनाम क्यों दे दिया।
लबों का मुझे जाम क्यों दे दिया।
जिसे मैंने सोचा नहीं था कभी,
खुदारा ये अंजाम क्यों दे दिया।
तमन्ना थी दीदार हो इक नज़र,
वो तूने सुबह शाम क्यों दे दिया।
मज़ा था तेरे इश्क के दर्द में,
मुझे तूने आराम क्यों दे दिया।
तुझे मैंने ‘प्रेमी’ सा चाहा नहीं,
तो फिर प्यार का नाम क्यों दे दिया।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी