मुस्तहकमुल-‘अहद
क्या ज़माना आ गया है ?
दरिंदगी की इंतिहा हो गई है ,
दर्दनाक क़त्ल को हादसा बताया जा रहा है ,
वाकये को सनसनीखेज तमाशा बनाया जा रहा है ,
दौलत ,रुसूख़ और सियासत सर चढ़कर
बोल रही है ,
इंसानियत सिसक- सिसक कर
दम तोड़ रही है ,
मक़्तूल के अपनों के दिल पर
क्या गुज़र रही है ,
इसका एहसास
किसी को नहीं है ,
खबरनवीसों को अपनी
टी आर पी बनाने की पड़ी है,
सामयीन को अफ़वाहों का बाज़ार
गर्म करने की पड़ी है ,
अब वक्त आ गया है ,
हमें संजीदगी से इंसनियत के
एहसास को जगाना होगा ,
मक़्तूल के अपनों को इंसाफ दिलाने का
कौल लेना होगा ,
वरना, दंरिदगी यूँही जारी रहेगी ,
और, इंसानियत हमेशा शर्मसार होती रहेगी।