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1 Jun 2023 · 1 min read

मुर्दा समाज

फिर एक चित्कार गूंज उठी
फिर शून्य से टकराकर लौटी
एक दरिंदे का वहशीपन देखा
देखी दुनिया की चाल मुखौटी

वार पर वार बेरहमी अत्याचार
पर दुनिया के कान पर जूँ न रेंगी
सब देख कर बेअसर रहे गुज़र
ये कैसा समाज ये कैसे ढोंगी

आँखों में लिए आस एक गुहार
नज़र किसी से तो टकराई होगी
दर्द के सैलाब में चीखती आँखें
उन कायरों पर भी छलकी होगी

गुजरते बेजान पुतलों की खामोशी
सन्नाटों को चीरती उसकी आवाज
चाकू ने तो बस दिल चीरा होगा
सौ बार मरी होगी देख मुर्दा समाज

एक घटना ने दहला दिया। अंतस् को झकझोर दिया।कवि कैसे रहे चुप?और क्या चुप रहना उचित होगा?तो बस कलम बोल पड़ी …..
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया

Language: Hindi
185 Views
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