मुझ में तुम हो तुम में मैं हूँ
दिल के कोने में हसरतों को छिपा कर न रखना
बातें जो भी हों उसे साझा जरूर करना
बड़ी तकलीफ देती हैं अनकही बातें
तुम इस बात को जरा समझना
क्योंकि मुझ में तुम हो तुम में मैं हूँ….
मन विचलित होता है कभी
उद्वेग से भरा होता है कभी
निकल जाते हैं शब्द कटु
पर माफ़ करना और गले लगाना
क्योंकि मुझ में तुम हो तुम में मैं हूँ….
जीवन के इस भागमभाग में उलझा हर इंसान है
प्यार बेइंतहा होता है पर शब्द गुमनाम हैं
दिल से सोचो मुझे कभी तुम
दिल से समझो मुझे कभी तुम
क्योंकि मुझ में तुम हो तुम में मैं हूँ….
माना की वापस हो नहीं सकते
निकले हुए शब्द मुख से
पर दिल एकदम पाक है
दिल से दिल की डोर बांध कर तो देखो एकबार क्योंकि मुझमे तुम हो तुम में मैं हूँ…