मुझे हसरतों ने रुलाया
मुझे हसरतों ने रुलाया
मिरा कोई बन ही न पाया
उसे बंधन में बाँध लूँगी
मिरे शहर वो अगर आया
किसी काँटे को दोष क्यों दूँ
गुलों से ज़ख़्म मैंने खाया
मिरे दर्द की जो दवा था
उसी ने मिरा दिल दुखाया
मुक़द्दर में फ़ुर्क़त लिखी क्यों
ख़ुदा ने क्यों क़हर ढाया
– त्रिशिका श्रीवास्तव ‘धरा’