मुझे कुछ कहने दो…
सदियों का सताया चेहरा हूँ,
नारी,रमणी,वनिता और अवला हूँ,
देख मेरे अंगों का स्वरूप सदा क्यूँ बहक जाते हो,
क़भी मुझे जी भरकर जी लेने दो ।
आत्मनिर्भर बनने का मौका तो मिले,
मेरी जुबान को इक आवाज़ तो मिले,
घर,परिवार,समाज की इज्ज़त का बास्ता देकर,
मेरी हिम्मत के पंख बिखरने न दो ।
मुझे आज कुछ कहने दो,
जलते अंगारों पर चलने दो,
कौन कहता है ज़ुल्मी बच जाएगा न्यायालयों से,
मुझे वीरांगना फूलन जैसी बनने दो ।