मुक्तक
१
जन्म जेल में लिए न्याय के अवतार !
युग चाहे बदले कंसों की सरकार !
चीर हरण द्रुपद सूताका का होना है ;
कृष्ण तो है नहीं बस कौरव भरमार !
२
रामनगर में कब मंदिर बनवाओगे !
सरयू का पानी कितना भी पाओगे !
मेरे श्रीराम को तंबू में बसाया ;
राम नाम पर कब तक महल सजाओगे !
३
हम शिक्षक अपने सिर बोझ उठाते हैं !
पाषाण खंड में मूरत गढ़ जाते हैं !
खुशियाँ मिले ना मिले गमों से यारी है ;
चेहरों पर सदा मुस्कान सजाते हैं !
४
बने रहे राष्ट्र निर्माता ऐसा मन विश्वास हो !
हर कर्म करें हम अपना यही मन में आस हो !
सद्गुण सारे भेंट चढ़ा दे चलते अनुकरण में ;
ऊपर चले निज सेवी से हर मन में अभिलाष हो !