मुक्तक
नौकरी के साथ घर परिवार बा।
जे अकेले बा उहे लाचार बा।
गोंदिये में हर घड़ी बबुनी रहें।-
बंद सब कवितागिरी अब यार बा।
बनि गइल जबसे पड़ोसन प्यार बा।
हर घड़ी अब मेहरी से रार बा।
घर में’ ना तनिको रहल जाला सुनऽ-
इक झलक मिलला क इंतेज़ार बा।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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