मुक्तक
ज़ुबानी जंग नहीं अब अंदाज़ बदलना होगा
हम परिंदों को अपना परवाज़ बदलना होगा
आस्तीन के साँपों को ज़रूरी है अब कुचलना
सरहदों की खातिर हमें आवाज़ बदलना होगा
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अमल ज़रूरी है,यलगार ज़रूरी है
गद्दारों के लिए तलवार ज़रूरी है
अमन का पैगाम देशभक्तों के नाम
दुश्मनों के लिए ललकार ज़रूरी है