Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Dec 2021 · 4 min read

मुक्तक

मुक्तक

मुक्तक एक ऐसी काव्य विधा है जो आजकल सर्वाधिक लोकप्रिय है, कवि सम्मलेन का मंच हो या कविगोष्ठी या फिर फेसबुक का विस्तृत संसार, मुक्तक का वर्चस्व सर्वत्र देखा जा सकता है। थोड़े में अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय देना हो , किसी लम्बे काव्य पाठ की भूमिका बनानी हो या श्रोताओं के बंधे हुए हाथ तालियों के लिए खोलने हों तो सबसे अचूक विधा है मुक्तक। यहाँ तक कि प्रबन्ध काव्यों में भी मुक्तकों का प्रयोग प्रभावशाली रूप में होता है। आइए देखते हैं ऐसी चमत्कारी काव्य विधा मुक्तक का मर्म क्या है।

मुक्तक क्या है
मुक्तक एक सामान लय वाली चार पंक्तियों की रचना है जिसकी पहली , दूसरी और चौथी पंक्ति तुकान्त तथा तीसरी पंक्ति अनिवार्यतः अतुकान्त होती है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम पंक्ति में होता है।

मुक्तक के लक्षण
1. इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं जिनकी लय एक समान होती है। यह लय किसी भी मापनीयुक्त या मापनीमुक्त छन्द पर आधारित हो सकती है, जिसे मुक्तक का आधार छन्द कहते हैं।
2. पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियाँ तुकान्त होती हैं जबकि तीसरी पंक्ति अनिवार्यतः अतुकान्त होती है।
3. अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार होती है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम पंक्ति में रहता है और अंतिम पंक्ति में ही कथ्य का विस्फोट होता है।
4. यदि मुक्तक की शाब्दिक बुनावट को देखा जाये तो गीतिका (या ग़ज़ल) का मुखड़ा और एक युग्म मिलाने से मुक्तक बन जाता है किन्तु यह पूरा सच नहीं है क्योंकि गीतिका के मुखड़े और युग्म का विषय स्वतंत्र या निरपेक्ष होता है जबकि मुक्तक की चारों पंक्तियाँ एक ही विषय को प्रतिपादित करती हैं।
5. मुक्तक की कहन कुछ-कुछ गीतिका (या ग़ज़ल) के युग्म जैसी होती है, इसे वक्रोक्ति, व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं लेकिन गीतिका में जो बात दो पंक्तियों में पूरी होती है वही बात मुक्तक में चार पंक्तियों में पूरी होती है। वस्तुतः मुक्तक की पहली तीन पंक्तियों में लक्ष्य पर ‘संधान’ किया जाता है और अंतिम पंक्ति में प्रहार किया जाता है, यह प्रहार एक विस्फोट की भांति चमत्कारी होता है। जैसे विस्फोट की ध्वनि के प्रभाव से व्यक्ति के मुख से कुछ अचानक प्रस्फुटित हो जाता है वैसे ही चौथी पंक्ति के प्रभाव से श्रोता के मुख से अनायास ही ‘वाह’ निकल जाता है।
6. मुक्तक वस्तुतः प्रकारांतर से छन्द ही होता है। यदि चार चरणों वाले सम मात्रिक या सम वर्णिक छन्द के पहले, दूसरे और चौथे चरणों को तुकान्त तथा तीसरे चरण को अतुकान्त कर दिया जाये तो वह मुक्तक हो जाता है। इस प्रकार मुक्तक और छन्द में अंतर केवल तुकान्त-विधान का है।

उदाहरण :
रोज़ियाँ चाहिए कुछ घरों के लिए,
रोटियाँ चाहिए कुछ करों के लिए।
काम हैं और भी ज़िंदगी में बहुत –
मत बहाओ रुधिर पत्थरों के लिए।

विन्दुवत व्याख्या
1. उपर्युक्त चारों पंक्तियाँ एक ही लय में निबद्ध हैं। यह लय वास्रग्विणी छंद पर आधारित है। यह छंद मापनीयुक्त है। मुक्तक की पंक्तियाँ छन्द की मापनी का किस प्रकार पालन करती हैं, इसे निम्न प्रकार देखा जा सकता है-
रोज़ियाँ/ चाहिए/ कुछ घरों/ के लिए,
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
रोटियाँ/ चाहिए/ कुछ करों/ के लिएl
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
काम हैं/ और भी/ ज़िंदगी/ में बहुत –
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
मत बहा/ओ रुधिर/ पत्थरों/ के लिएl
गालगा/ गालगा/ गालगा/ गालगा
लय की समानता को गा कर भी देखा जा सकता है।
2. इस मुक्तक पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियों का तुकांत है – ‘अरों के लिए’ जिसे निम्नप्रकार निर्धारित किया जा सकता है –
घरों के लिए = घ् + अरों के लिए
करों के लिए = क् + अरों के लिए
थरों के लिए = थ् + अरों के लिए
इस तुकान्त ‘अरों के लिए’ में ‘अरों’ समान्त है जबकि ‘के लिए’ पदान्त है।
3. इस मुक्तक की पहली दो पंक्तियों में मूल कथ्य की भूमिका रची गयी है , तीसरी पंक्ति से मुख्य कथ्य का प्रारंभ होता है और वह चौथी पंक्ति में जाकर पूर्ण होता है।
4. इसकी शाब्दिक बुनावट को देखें तो पहली दो पंक्तियाँ गीतिका के मुखड़े जैसी लगती है और अंतिम दो पंक्तियाँ उसी गीतिका के युग्म जैसी लगती हैं।
5. इसकी कहन की विशिष्टता को सहज ही देखा और परखा जा सकता है।

मुक्तक के दूसरे अर्थ
‘मुक्तक’ शब्द आज के साहित्यिक परिवेश में उसी अर्थ में प्रयोग होता है जिसकी चर्चा ऊपर की गयी है किन्तु कदाचित इसका प्रयोग निम्न रूपों में भी होता है –
(1) पारंपरिक काव्य शास्त्र में काव्य को दो वर्गों में विभाजित किया गया है – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य। प्रबंध काव्य के अतर्गत दो वर्ग आते हैं– महा काव्य और खंड काव्य। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के काव्य ‘मुक्तक काव्य’ के अंतर्गत आते हैं।
(2) भारतीय सनातनी छंदों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है – मात्रिक और वर्णिक। इनमे से वर्णिक छंद भी दो प्रकार के हैं– एक ‘गणात्मक’ जिनमें प्रत्येक चरण के सभी वर्णों का मात्राभार सुनिश्चित होता है और दूसरे ‘मुक्तक’ जिनमें प्रत्येक चरण के वर्णों की संख्या तो सुनिश्चित होती है किन्तु वर्णों का मात्राभार अनिश्चित या स्वैच्छिक होता है।

मुक्तक कैसे रचें
सबसे पहले किसी मनपसंद गीतिका या छन्द को गाकर और गुनगुनाकर उसकी लय को मन में बसायें। उसी लय पर शब्दों ढालते हुए अपने मन के भाव व्यक्त करें। अपनी बात मुक्तक के तानेबाने में इस प्रकार कहें कि कथ्य का विस्फोट चौथी पंक्ति में ऐसे चमत्कार के साथ हो कि सुनने वाला ‘वाह’ करने पर विवश हो जाये। जब मुक्तक बन जाये तब एक बार उसकी छन्दबद्धता और तुकांत विधान को अवश्य जाँच लें और यदि कोई कमी दिखे तो उसे सुधार लें। यदि आप में काव्य प्रतिभा है तो मुक्तक अवश्य बनेगा और बहुत सुन्दर बनेगा।
——————————————————————————————–
संदर्भ ग्रंथ – ‘छन्द विज्ञान’, लेखक- ओम नीरव, पृष्ठ- 360, मूल्य- 400 रुपये, संपर्क- 8299034545

Category: Sahitya Kaksha
Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 2574 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
प्रिय
प्रिय
The_dk_poetry
सत्य शुरू से अंत तक
सत्य शुरू से अंत तक
विजय कुमार अग्रवाल
देखने का नजरिया
देखने का नजरिया
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"पुतला"
Dr. Kishan tandon kranti
"पापा की परी"
Yogendra Chaturwedi
दिलकश
दिलकश
Vandna Thakur
विनम्रता
विनम्रता
Bodhisatva kastooriya
■ कटाक्ष
■ कटाक्ष
*Author प्रणय प्रभात*
ये ज़िंदगी
ये ज़िंदगी
Shyam Sundar Subramanian
आंखो में है नींद पर सोया नही जाता
आंखो में है नींद पर सोया नही जाता
Ram Krishan Rastogi
खुद पर यकीन करके
खुद पर यकीन करके
Dr fauzia Naseem shad
सरल जीवन
सरल जीवन
Brijesh Kumar
मिलती बड़े नसीब से , अपने हक की धूप ।
मिलती बड़े नसीब से , अपने हक की धूप ।
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
किताबों में तुम्हारे नाम का मैं ढूँढता हूँ माने
किताबों में तुम्हारे नाम का मैं ढूँढता हूँ माने
आनंद प्रवीण
हमको
हमको
Divya Mishra
Ajj purani sadak se mulakat hui,
Ajj purani sadak se mulakat hui,
Sakshi Tripathi
आज के युग का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है
आज के युग का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है
पूर्वार्थ
हर ज़ख्म हमने पाया गुलाब के जैसा,
हर ज़ख्म हमने पाया गुलाब के जैसा,
लवकुश यादव "अज़ल"
होने नहीं दूंगा साथी
होने नहीं दूंगा साथी
gurudeenverma198
सामाजिक बहिष्कार हो
सामाजिक बहिष्कार हो
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
लोग गर्व से कहते हैं मै मर्द का बच्चा हूँ
लोग गर्व से कहते हैं मै मर्द का बच्चा हूँ
शेखर सिंह
बहाव के विरुद्ध कश्ती वही चला पाते जिनका हौसला अंबर की तरह ब
बहाव के विरुद्ध कश्ती वही चला पाते जिनका हौसला अंबर की तरह ब
Dr.Priya Soni Khare
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
और कितना मुझे ज़िंदगी
और कितना मुझे ज़िंदगी
Shweta Soni
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
💐प्रेम कौतुक-544💐
💐प्रेम कौतुक-544💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*अनकही बातें याद करके कुछ बदलाव नहीं आया है लेकिन अभी तक किस
*अनकही बातें याद करके कुछ बदलाव नहीं आया है लेकिन अभी तक किस
Shashi kala vyas
पत्थर - पत्थर सींचते ,
पत्थर - पत्थर सींचते ,
Mahendra Narayan
* बच कर रहना पुष्प-हार, अभिनंदन वाले ख्यालों से 【हिंदी गजल/ग
* बच कर रहना पुष्प-हार, अभिनंदन वाले ख्यालों से 【हिंदी गजल/ग
Ravi Prakash
2670.*पूर्णिका*
2670.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Loading...