मुक्तक
त्यौहार
सीली है पर सुलग रही है लकड़ियाँ,
तुम आओ तो कुछ बना ले हम..
जाने क्यों नाराज है बाबा,
तुम आओ तो मना ले हम..
हम जानते हैं कि तुम्हें अब जमीं नहीं दिखती…
कभी लौट के आऔ, तो त्यौहार मना ले हम..
पंकज शर्मा
झालावाड़(राज.)