मुक्तक
जितने भी रहबर मिले हमें सब जोंक ही मिले
खून पिया हमारी और हमारी होठ भी सिले
~ सिद्धार्थ
बुलाती हुं, मगर कोई अता ही नहीं
कोरोना का डर है जो जाता नहीं
बस कुछ दिनों की ही बात है
दरबे में जरा सम्भल कर ही रह लो
हमारी महफ़िल वो नहीं जिसमे
फिर से दोस्तों को बुलाया जाता नहीं ?
~ सिद्धार्थ