मुक्तक
मैं तुम्हें ढूंढ़ती हूं … अक्सर बिस्तर के चौपाल पे
सैकड़ों जख्म लिए तनहा दिल के दीवाल पे
नींद तो खैर आ ही जाती है आंखों के दरीचों में
तुम भूल से भी नहीं बुलाते मुझे अपने ख्याल में
दिल तनहा वक़्त भी धूल उड़ता ही चला जाता है
मैं बैठी हुं अब तक, तेरे यादों के रंग-ए-जमाल में
~ पुर्दिल