मुक्तक
१.
मेरे उलझे हुए ख्वाबों की ताबीर में वो
बस सगा सा दिखे अपनी ताबीर में वो
~ सिद्धार्थ
२.
बीते जून का झगड़ा था, मन से मन का रगड़ा था
दिसम्बर के चौपाल में सुलह हुआ, वो भी तगड़ा था
~ सिद्धार्थ
३.
माना कोई रिश्ता नहीं तेरा मेरा
मगर ये तो जरा बता जा
क्यूं तकती हैं आंखे रस्ता तेरा,
धड़कता है दिल क्यूं तेरे नाम से मेरा
~ सिद्धार्थ