मुक्तक
१.
मेरे जिस्म की जर्जर दीवार पर मजहब न खोज
इश्क हूं इश्क बनकर ही खाक में मैं मिल जाऊंगा
… सिद्धार्थ
२.
हम लड़ रहें है कि सबको मिले शिक्षा का अधिकार
तुम कह रहे हो जाओ करो पकौड़ा तलने का व्यापर।
तुम खून बहा कर कुचलने निकले हो हमारी आवाज
हम अड़ के लड़ के भी लेंगे अपने हिस्से का अधिकार।
…सिद्धार्थ
३.
एक चिंगारी बहुत है साथी सारी बस्तियां जलाने को
कोई पानी का तरफदार क्यूं नहीं होता शोला बुझाने को
… सिद्धार्थ