मुक्तक
१.
बड़ा नाज़ुक मिज़ाज है वो, बस साफ़गोई से चलता है
समझा कर तो देखो, इश्क़ अक़्ल के बगीचे में नहीं पलता है
…सिद्धार्थ
२.
इश्क़ भीतर भीतर चलता है
दिल के सुर्ख़ नदी में पलता है
…सिद्धार्थ
१.
बड़ा नाज़ुक मिज़ाज है वो, बस साफ़गोई से चलता है
समझा कर तो देखो, इश्क़ अक़्ल के बगीचे में नहीं पलता है
…सिद्धार्थ
२.
इश्क़ भीतर भीतर चलता है
दिल के सुर्ख़ नदी में पलता है
…सिद्धार्थ