मुक्तक
1.
सब्र की बात न कर … हंस दूंगी मैं
रिस्ते हुए जख्मों पे नमक मल लूंगी मैं
~ सिद्धार्थ
2.
लिखदो मेरे हांथो पे, वतन के लिए मैं खतरा हूं
मज़ा तो इस में है
खाके वतन उठ के कहे मैं इंकलाबी कतरा हूं
लम~ सिद्धार्थ
3.
लड़ लूं क्या… मैं उस से जो मुझ में ही कस्तूरी सा रहता है
बड़ी बेचैन हूं, दिल मेरा किसी से लडने को मुझको कहता है
~ सिद्धार्थ