मीना
न मैं हमराज़ बन पाई
न मैं हमराह बन पाई
न मैं शम्मे- चरागां की
कोई एक शाम बन पाई
न बन पाई कोई ख्वाहिश
न कोई ख्वाब बन पाई
बहुत टुकड़ों में टूटी भी
अगर शाहकार बन पाई
जिसे चाहा मैं उसकी
क्यूं नहीं हमख्वाब बन पाई
मैं हमदर्दी की दुनिया का
बस एक सामान बन पाई !!!