“मिलें बरसों बाद”
मिलें बरसों बाद,
मिलकर तुमसे अच्छा लगा,
रात में तेरे यादें लेकर,
मीठी नींद में सोया,
मिलें स्वप्न में भले तुम,
मिलकर तुमसे अच्छा लगा ।
होकर खुद (तुम) दूर,
बेचैन सा रहने लगा,
सारा रात अकेले में,
बस तुम्हें ही सोचने लगा,
यादों के पन्नों जब मिले,
मिलकर तुमसे अच्छा लगा।
यूं शुरू हुआ सिलसिला बातों का,
क्या दिन क्या रात,
मिलने की बड़ी चाहत तुमसे,
करते थे मोबाईल से बात,
मिले वीडियो कॉल पर तुम,
मिलकर तुमसे अच्छा लगा।
बातों के सिलसिले यूं ही बनाए रखना,
यादों में यूं ही बसाए रखना,
मेरी ज़िंदगी तो चातक पक्षी,
बूंद स्वाति के बरसाते रहना,
जब – जब मिले यादों में तुम,
मिलकर तुमसे अच्छा लगा।।
“पुष्पराज फूलदास अनंत”