मित्रता
मित्र तो मित्र रहे, प्यारा सा साथ है,
उनके बिना, सच ! लगता अनाथ है।
खुशियां बांटना, मन का है मनोहारी,
ग़म भी बंट जाता, गर उनका हाथ है।।
मित्र तो मित्र रहे —
मित्र वही, सदैव, सद राह दिखाते है,
कुमार्ग ले जाये, क्या मित्र कहलाते है?
मित्रता ना देखती, हैसियत मनुज की,
दौड़ते हैं कृष्ण, जब सुदामा आते है।।
मित्र तो मित्र रहे —
मित्रता होती है निस्वार्थ भाव में,
अपेक्षा उपेक्षा से परे समभाव में।
मित्रता तुलति नहीं किसी तराजू से,
ये तो है अनमोल ना मोल भाव में।।
मित्र तो मित्र रहे —
मित्रता से ही नये इतिहास लिखे है।
युद्ध में शान्ति के सूत्र भी सीखे है।
मित्रता के खातिर होता झुक जाना,
अहंकार में कहाँ सच्चे मित्र दिखे है।।
मित्र तो मित्र रहे —
(रचनाकार :- डॉ शिव लहरी )