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28 Jun 2024 · 1 min read

मित्र

मित्र

ऐसा मित्र कहाँ पाएंगे?
खोज खोज कर थक जाएंगे।।
नहीं स्वप्न में भी है संभव।
जागृत जग में सदा असंभव।।

अपने आप मिले हो प्यारे।
बहुत मनोहर अद्भुत न्यारे।।
हो अनुपम सौभाग्य निराला।
मधु खुशियों की हो प्रिय हाला।।

प्रिय भावों से भरे हुए हो।
अति रंगीन सहज गहरे हो।।
कोमल चित्त कृपा के सागर।
शुभ चितवन अनुपम मृदु नागर।।

तुझको पास देख खुश होता।
सावन में कंचन को बोता।।
तुम रहते हो सदा हृदय में।
तुम चन्दन हो शैल मलय में।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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