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1 Apr 2024 · 1 min read

*मित्र ही सत्य का ख़ज़ाना है*

प्रियवर मित्र कहाँ खो जाता?
साथी बनता फिर सो जाता।।
बहुत याद उसकी आती है।
नींद हमारी खो जाती है।।

दिलवर मधुरस मीत इधर आ।
पास रहो तुम कहीं नहीं जा।।
तेरा मित्र बुलाता तुझको।
धोखा देना कभी न इसको।।

उर नीरस है अगर नहीं हो।
लगता मन जब साथ तुम्हीं हो।।
रहना प्यारे साथ सदा तुम।
मेरे दिल में हो सचमुच तुम।।

तुझको मैंने मीत बनाया। तुझको ही दिल से अपनाया।।
नाता तोड़ कहीं मत जाना।
करना बातेँ प्रीति निभाना।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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