” मित्रों की व्यथा “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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हमारी मित्रों की संख्या ……आवाध गति से बढ़ती जा रही है !……हम अब सीमित दायरों में नहीं जकड़े हुए हैं !….. सम्पूर्ण देश ही नहीं सारा विश्व हमारे आगोश में सिमट गए !….. रंग -विरंगे फूलों की लड़ियाँ बनने लगीं !….. कुछ अतीत के खोये मित्रों का सानिध्य प्राप्त हो गया !…… पुरानी स्मृतियाँ खिलखिलाकर दिल के दरवाजों को दस्तक देने लगीं !….. आज़ सचमुच मनो हमारे भाग्य खुल गए,……. अन्यथा ये दिन शायद ही मयस्सर होते !….. कुछ मित्र बचपन के बिछड़ जाते हैं !…… कई मित्र पढाई और नौकरी में अपनी राहें बदल लेते हैं !…. उम्र की सीढ़िओं को तय करते -करते बहुत दूर निकल जाते हैं !…… विरले कोई नजर आता है !…… परन्तु इस यन्त्र के आविष्कारों से हमारी कल्पना की उड़ान क्षितिज के छोर तक पहुँच कर हमारे पुराने भूले बिसरे मित्रों को करीब ला खड़ा कर दिया !….. आकृति ,…….रूप ,…..और …….भेष भूषा उनके बदल गए ……पर उनके नाम से एहसास होने लगा …..हम कभी साथ -साथ थे !…….नए मित्रों की टोलियां बनने लगीं !…… कुछ समतुल्य मित्रों समावेश हो गया …..कई श्रेष्ठों से हम जुड़ गए …कनिष्ठों से भी हम प्यार से जुड़ गए !….. मित्रता के मालाओं में भांति -भांति फूलों का मिश्रण हो गया !…. इनमें साहित्यकार ,…..लेखक ,..कवि ,….राजनीतिज्ञ ,….अधिवयक्ता ,…डॉक्टर ,..नौकरशाह ,…व्यापारी,…शिक्षक ,…..विद्यार्थी के जुड़ जाने से नक्षत्र जगमगा उठे !….. पर हमारी यह टोलियाँ यथार्ताः डिजिटल मित्रता के दायरों में सिमट कर रह गयीं !….. हम किसी के व्यथा को जान नहीं पाते !…. आपसी सहयोग ,….विचारों का आदान -प्रदान …..मानो दिवा स्वप्न बन गया है !……. कुछ हम में से लोग अपनी पीड़ाओं में उलझे पड़े रहते हैं ,…….पर दूसरों को एहसास हो तब ना ?…… आजके डिजिटल युग में हम मित्रों की फ़ौज तो बना लेते हैं ,…..पर अपनी व्यथाओं को बिना आगाह किये किसी नेपथ्य में विलीन हो जाते हैं ,…..और हम…. ‘मित्रों की व्यथा ‘का आभास नहीं कर सकते !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका