मित्रता
मित्रता (शुभांगी छन्द)
सदा मित्र में,प्यार बसा है,मधुर रसा है,सुधा सरस।
बना मित्र जो,प्रेम करेगा,नख से शिख तक,रस ही रस।
बिना प्यार के,कहाँ मित्रता,मित्र-प्यार हैं,सम्बन्धी।
मित्र जहाँ है,प्रीति वहीं है,हृदय एक हो,अनुबंधी।
यही प्रकृति का,नियम निराला,मित्र प्यार में,पगता है।
बनकर अति प्रिय,मधुर मुखाकृति,मित्र प्यार में,जगता है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
यह कविता मित्रता की महत्ता और प्यार को वर्णित करती है। कविता में कहा गया है कि मित्रता में सदा प्यार बसा होता है, और यह मधुर रसा होता है। कविता में यह भी कहा गया है कि मित्रता के लिए प्यार का होना आवश्यक है, और मित्र-प्यार ही सच्चे सम्बन्ध हैं।
कविता में निम्नलिखित मुख्य बिंदु हैं:
1. मित्रता में प्यार: कविता में कहा गया है कि मित्रता में सदा प्यार बसा होता है।
2. मित्रता की मधुरता: कविता में कहा गया है कि मित्रता मधुर रसा होती है।
3. प्यार की आवश्यकता: कविता में कहा गया है कि मित्रता के लिए प्यार का होना आवश्यक है।
4. मित्र-प्यार का महत्व: कविता में कहा गया है कि मित्र-प्यार ही सच्चे सम्बन्ध हैं।
5. मित्रता की प्रकृति: कविता में कहा गया है कि मित्रता की प्रकृति प्यार में पगता है।
यह कविता मित्रता की महत्ता और प्यार को वर्णित करती है, और यह दर्शाती है कि मित्रता में प्यार का होना आवश्यक है।
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