*मित्रता*
मित्रता सदा बनी रहे यही मुकाम है।
मित्रता बिना ये जिन्दगी नकाम नाम है।
मित्र है वही सदैव साथ दे करीब हो।
मित्र प्रेम पात्र ही उदार दिल नसीब हो।
मित्र धर्म सर्व श्रेष्ठ अद्वितीय भाव है।
मित्रता सवर्ण स्वर्ण रंग भव्य छांव है।
मित्र में न खोट हो न दोष हो न द्वेष हो।
शुद्ध भाव भंगिमा असीम स्नेह वेश हो।
स्वच्छता अपार हो हृदय उदार दिव्य हो।
देव रूप श्वेत रंग मानवीय हव्य हो।
नेत्र नीर निर्मला विराट नव्यचार है।
शोकहर कृपालुता दयालु शुभ विचार है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।