” मित्रता में मल्ययुध्य नहीं सौहाद्रता चाहिए “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कितने प्रयासों के पश्यात नये मित्रों और पुराने मित्रों से मिलन हो जाते हैं ! खुशिओं की लहर दौड़ने लगती है ! नये मित्रों से जुड़ना एक नयी अनुभूति का एहसास होने लगता है ! धीरे धीरे हम उनके विचारों को जान पाते हैं ! उनकी सकारात्मक लेखनी ,उनकी कृतिओं और समसामयिक विषयों की चर्चाओं से यह अनुभव होने लगता है कि हमने यथायोग्य मित्रों की टोली बना रखी है ! हमारे फेसबुक के पन्नों में विविधता रहते हुए भी हमें एकता का एहसास होता है ! इनमें ज्ञान की गंगा सदा बहा करती है ! पुराने मित्र भी इन यंत्रों के माध्यम से से जुड़ने लगते हैं ! शायद यह यन्त्र नहीं होते तो मिलना दिवास्वप्न होता ! पुराने मित्रों से जुड़ना एक आपार हर्ष का विषय बन जाता है ..ह्रदय गदगद हो जाता है ! पर परिवर्तन के तथ्य को हम ठुकरा नहीं सकते ! रूप ,आकृति ,विचार और परिवेश में बदलाब आना तो स्वाभाविक है ..,…..फिर भी हमें आनंद आता है उनके सनिकट पहुँचने का ! सारी बातें ,….पुरानी यादें ,…अपनी उपलधियों ,…..अपने परिवार की बातें …..साझा करते हम ऊबते नहीं ! बस बदले हुए मिलते हैं …..अपनी राजनीति सोच ! हम जब परिपक्व होने लगते हैं तो किसी न किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ने लगते हैं ! हमारी मित्रता ….विचारों का सामंजस्य …सहयोग ……गोपनीयता …….और मिलन …..के स्तम्भों पर ही हमारी मित्रता टिकी होती है ! हाँ …..मिलन की बात तो शायद फेसबुक के दायरों से मनो निकल चुकी है पर सामंजस्य ,सहयोग और गोपनीयता को हम बरक़रार रख सकते हैं ! हमें अपनी दोस्ती को जीवंत रखने का मंत्र सीखना होगा !….. राजनीतिक मुद्दे से हमें दूर नहीं हटना है…. पर मित्रों के विचारों को भी सुनना है !…. हमें अपनी मित्रता को अक्षुण बनाना है तो हमें मित्रों से राजनीतिक मल्ययुद्ध नहीं करना होगा परन्तु अपने राजनीतिक विचारधारा को त्यागना भी नहीं हैं ! हम तो इतना कह सकते हैं ..दोस्तों के कमेंट बॉक्सों को हम राजनीतिक अखाडा ना बनाये …… हो सके तो अपनी टाइम लाइनों पर अपने विचारों को रखें …….मित्रता में मल्ययुध्य नहीं सौहाद्रता चाहिए …..!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका