“मित्रता की परख “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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बात सीधी
तो समझ में ,
लोगों को आती नहीं !
खमाखा उलझी
बातों को ,
लिखकर सुलझाते नहीं !!
बातें सटीक
संक्षिप्त हो ,
तो पढ़ने में
सहज होता है !
उच्च दर्शन ,आलंकारिक ,
भाषा को भला कौन समझता है ?
सब तो अपने
धून के ,
राग -मल्हारों
में व्यस्त हैं !
उनके गर्दभ रागों को
सुन के ,
हम सब बड़े मस्त हैं !!
मित्र बनने की
ललक है ,
सब फौज बनाना
चाहते हैं !!
किसीको किसी से
चाहत नहीं ,
फिर भी लोगों को
बताना चाहते हैं !!
हम भूल के भी
उनसे कभी ,
यदि गुफ़्तगू करना चाहेंगे !
है कहाँ फुरसत उन्हें ,
वे वर्षों तक कहीं छुप जाएंगे !!
फिर अपने
जन्म दिनों पर ,
निकाल कर आयेंगे !
सब लोगों की बधाई
शुभकामना ,
लेके पाताल में
पुनः चले जाएंगे !!
प्रतिउत्तर में
आभार ,अभिनंदन ,
धन्यवाद देना
उन्हें आता नहीं !
शालीनता, शिष्टाचार के ,
मंत्रों को वह कभी दोहराता नहीं !!
मित्रता को सम्मान देकर ही मित्रता को जान पाएंगे !!
यदा- कदा संवाद करने से सभी को पहचान पाएंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा ‘परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत
02.03.2022.