मिट्टी की सुगंध
कोई तो हो…..
जिसकी गोद में सर रख खुद को भुला दूं,
जिसकी बाहों के घेरे में आकर खुद को संभाल लूं।।
अरसे बाद ही सही…
फिर दिल को धड़कन मिल जाए,
महक उंठु, चहक उंठु, वो आंगन मिल जाए,
मन का रूदन कम हो, वो आंसू मिल जाए,
यात्रा को बयां कर सकूं, वो शब्द मिल जाए।।
सच यही है…..
मिट्टी की सुगंध में मेरी जान है अटकी,
जहां बीता बचपन मेरा कण-कण में मैं, बसी।।
तलाश जो मैं कर रही, मिलेगा वह मुझे वहीं,
खुद को सहज कर लूं, उंगलियों का स्पर्श मिलेगा वहीं।।
मुझे सुनने वाली वहां मां मिलेगी
बिना लफ्ज़ों के वह सब भांप लेगी।।
बिना अल्फाजों के वह तो बस “मैं हूं ना” का एहसास देगी,
और झट से मुझे नींद अपनी आगोश में ले लेगी।।
सीमा टेलर ‘तू है ना’ (छिम़पीयान लम्बोर)