माही के दोहे
मानव कहता युग बुरा ,युग मानव धिक्कार !
दूजे को दोषी बता ,हो कैसा उपचार!!१!!
मैं मे मेरा कुछ नहीं ,सब तेरा ही हाथ !
जीवन पल ना जी सकूँ, ना हो तेरा साथ !!२!!
पीर पराई जान ले ,बन जा तू इन्सान !
पीर पराई जो हरे ,कहलाता भगवान !!३!!
जाति-पाति मूल मंत्र है ,राजनीति हथियार !
इसी धरा पर चल रहा ,जहाँ सब व्यापार !!४!!
जाति-पाति के बिना, राजनीति बेजान !
साँचा कोई ना दिखें ,सूना है सब मान !!५!!
जाति-पाति एक आग है, रोटी जहाँ पकाय !
खाने वाला कौन है ,जो छिप करके खाय !!६!!
लगा वतन के आन पर ,जाति-पाति का दाग !
जब तक यह चलता रहे ,फूट गए हैं भाग !!७!!
ना अटल कैसे टलें, हर दिल जिसका राज !
हो पंकज तुम राजनीति, जन पीड़ा आवाज !!८!!
जीवन तो सब जी रहे कुछ चंदन गंध निहाल !
जीवन अपना भेंट कर , सदा सजाते भाल !!९!!
रुग्णालय खुद रूग्ण हैं, नीति पड़ी बीमार !
जीते जी निचोड़ लिया ,वसूले शव उधार !!१०!!
जीवन डोरी जो बँधी, सबको रखना याद !
ईश धरा बहिना चुका, ऋण जीवन आबाद !!११!!
कहाँ वतन भाई रहा ,बहिना कब खुशहाल ,!
बिखर रही है आबरू ,शहर गली चौपाल !!१२!!
अवगति ऐसी कब दिखी ,भूत लिया सब जाँच !
नारी देवी देश में, नर बन गया पिशाच !!१३!!
कानन गहन बहेलिये, हिरण खुद को सँभाल !
कोई नहीं रक्षक यहाँ,भेड़िन की चौपाल !!१४!!
बाहर भीतर भय लगा ,सदमे में भगवान !
खोज रहा गलती कहाँ, बन बैठा शैतान !!१५!!