मॉब लिंचिंग
बेकसूर फिर तीन लोग, हिंसक भीड़ ने मारे
कैसे इनको इंसान कहूं, हैवान हुए यह सारे
मॉब लिंचिंग की घटनाएं, जब सुनने में आती हैं
शर्मसार होती मानवता, यह सब का दिल दहलाती हैं
कोई बच्चा चोर, कोई डाकन, कोई और अफवाहें फैलाते हैं
बिना सत्यता जाने सब, निर्दोषों पर हाथ उठाते हैं
अंतिम सांस तक निर्दयता से, उनको मारे जाते हैं
इस हृदय विदारक दृश्य को, ये कैसे सह जाते हैं
इतनी बड़ी भीड़ में क्या कोई, एक इंसान नहीं
संयम दया क्षमा करुणा का, एक भी पैरोकार नहीं
सुनो भीड़ का हिस्सा बनने वालों
जाने बिना झूठ ही अफवाह उड़ाने वालों
जाने बिना किसी पर भी ,अपना हाथ उठाने वालों
जाने बिना किसी को भी, अपराध की सजा सुनाने वालों
जानो तो कम से कम, क्या हुआ क्या घटना है
अफवाह या सच्चाई, या अकस्मात दुर्घटना है
धर्म जाति या संप्रदाय, किसी की बातों में न आना
जाने बिना भीड़ का, हिस्सा न बन जाना