माया और ब़ंम्ह
माया और ब़ंम्ह
दृष्य़ जगत ब़ंम्ह की माया है, जिसमें संसार समाया है
जगत दृश्य है, ब़ंम्ह अदृश्य है, यही तो उसकी माया है
सारी सृष्टि और काया, अदृश्य ब़ंम्ह ने सभी बनाया
चर्म चक्षुओं से कोई देख न पाया, उसकी तो है अदभुद माया
माया नश्वर ब़ंम्ह अमर है, ब़ंम्ह सत्य माया असत्य है
नश्वर में सुख ढूंढ रहे हैं,परम सत्य को भूल रहे हैं
मोह माया वासना कामना में, सभी निरंतर दौड़ रहे हैं
ब़ंम्ह तो घट घट वासी है, सृष्टि में माया व्यापी है
तुम ढूंढ रहे हो सृष्टि में,वो तो अंतरयामी है
ब़ंम्ह तो घट घट वासी है, क्या क्या काशी है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी