*”मायका”*
मायका
मायका बिना सूना ये जग संसार।
सारे जहाँ से अच्छा है मायका हमार।
माता पिता का आशीष भाई बहनों का प्यार।
देती है सच्चा सुख आदर मान और सम्मान ।
नहीं कोई गुमान ना कोई बुराई होवे अपमान।
बाबुल का घर प्यारा लागेअपना स्वाभिमान।
अठखेलियाँ करते वो बचपन की फरियाद।
अटूट विश्वास में बंधे वो प्रेमभाव बुनियाद।
परिवार के साथ में खुशियों की सौगात है ।
खुशियों से महके आँगन मायका पहचान है।
माँ की रसोई खाने में लाजवाब स्वाद है।
पापा के आदर्श बातों में शिक्षा का भंडार है।
आज हालात बदल गए लाचारी मजबूरी है ।
पास रहें या दूर रहकर भी ये आई महामारी है।
माँ की अँखियाँ तरस रही टकटकी लगाए नैन।
बेटियों से ही आँगन महके माँ निहारे दिन रैन।
क्या मायका क्या ससुराल मायामोह का जाल।
जीवन जीने के लिए बस इतना ही है अंतराल।
मायका से ससुराल की दूरी दो कुलों को तारता।
अटूट विश्वास बंधन छुटे नहीं ,फिर भी मायका जाये बिना मानता।
।।जय श्री कृष्णा राधे राधे ।।