मानुष जनम अमोल रे !
मानुष जनम अमोल रे !
मीठा – मीठा बोल रे !
आये हो तो कर लो आपसी प्रेम मेल -जोल ।
यह दुनिया है दुःख से भरी रे !
यहाँ पर सुख न कही रे !
बस प्रभु सद्गुरु नाम ।
जिह्वा से बोल रे !
बुरा न बोलो बुरा न सुनो ।
बुरा न देखो बुरा न गुनो ।
शुद्ध रखो सब माहौल रे !
मानुष जनम अमोल रे !
क्यो मिला है मानुष का चोला ।
इस राज को कोई न खोला ।
मै खोलू इस गीत सहारे ।
सुनो तन -मन-धन लगा प्यारे ।
कलियुग जोग न जग्य न ग्याना ।
एक आधार राम गुण गाना ।
यह दुनिया है स्वार्थी ।
न रहा कोई परमार्थी ।।
जलती आग को सब लोग तापते ।
बुझने पर न कोई झांकते ।।
सुख मे साथ निभाएंगे ।
दुःख मे भाग पराएंगे ।
दुःख क्यूं आवे।
सुख क्यूं जावे ।
ये भी तू जान रे !
मानुष जनम अमोल रे !
मीठा – मीठा बोल रे !
क्यो मिला हमे मानुष तन ।
कभी सोचा इस पर क्षण भर ।
कर्म कर अच्छे मोक्ष को प्राप्त करना ।
ये मनवा क्यों पीपर की भांति से है डोल रे !
कर्म करता चल फल की न सोच रे ।
अच्छे लगते है दूर के ढोल रे !
मानुष जनम अमोल रे !
ये शरीर कल्पित कपोल रे !
ये माया झोल झपेट रे !
मानुष जनम अमोल रे !
?? Rj Anand Prajapati ??