मानसिक प्रवृति
किसलिए आवेशित होना,
वो हवा में, हम जलमग्न,
असुरक्षित दोनों वो हम,
धरा जिसे मिले वो मग्न.
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इख्तियार करनी पड़ती है,
जमीं घर हो,समाज या देश.
कुछ पल चले लेकर विषाद,
बदल देते हैं, इंसानी भेष..
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कल तक जो, विशेष था.
आज सबसे निकृष्ट वही.
आमदा है जन गण मन.
आकाश वही, पाताल ही.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस