मानव भूल
#चौपाई
संसार सरकता है हरदम।
परिवर्तन कब होता कम ।।
ऊपर वाले नीचे आते।
नीचे वाले ऊपर जाते ।।
जिसके दिन अच्छे होते है।
सदा नहीं वैसे रहते हैं ।।
आगे पीछे भीड़ कभी थी ।
परिजनों की उन्हें कमी थी ।।
ज्ञान वान मूरख बन जाते।
मूरख ज्ञानी से बढ़ जाते ।।
इसीलिए तो चली कहावत ।
दुनिया हाथी राम महावत।।
मानवता का पालन करना ।
मानव अपना धर्म समझना।।
संप्रदाय तो बने बहुत हैं ।
धर्म अंश में सभी निहित हैं ।।
निजी स्वार्थ व अहं के चलते ।
संप्रदाय को धर्म समझते ।।
इसी दोष से करें लड़ाई ।
धर्म भूल अधर्म अपनाई ।।
कुछ स्थाई नहीं है धरा पर।
क्यों मानव जीता संग्रह कर।।
सुख पाने वस्तू की चाहत।
पाकर मिलती है नहि राहत।।
आकर्षण मिलने से घटता।
अन्य तरफ आकर्षण बढ़ता।।
मृगतृष्णा यह कभी न मिटती।
मानव देह की आयु घटती ।।
जोड़ जोड़ जो संग्रह करता।
बिन भोगे ही चलते बनता ।।
जानत सब मानत कुछ नाहीं।
मानव भूल गया जग माहीं।।
राजेश कौरव सुमित्र