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9 Jul 2024 · 1 min read

मानवीय मूल्य

विकास हो गया शहर का अब
पेड़ सारे हवा हो गए हैं

पक्षियों का चहचहाना बंद हुआ अब
हवाओं में भी जहर घुल गए हैं

शीतल बयार नही बहती अब
कंक्रीट के महल बन गए हैं

गौरैया ने भी मुंह फेरा है अब
मिजाज मौसम के बदल गए हैं

पर्यावरण अनुकूल सड़के नहीं अब
गौरव पथ तक सीमेंट के हो गए हैं

पलाश गुलमोहर विलुप्त हुए अब
क्रोटन लोगों को भा गए हैं

तापमान की विभीषिका ज्वलंत अब
उत्सर्जन गर्म बेहिसाब बढ़ गए हैं

भूस्खलन आम सी बात है अब
तांडव बरबादी के बढ़ गए हैं

बाढ़ की विभीषिका मत पूछो अब
मृदा अपरदन के दौर बढ़ गए हैं

मिलना जुलना बंद हो चला अब
व्हाट्सएप जैसे रोग बढ़ गए हैं

बातचीत भी बंद सी हो चली अब
संबंध मोबाइल की भेंट चढ़ गए हैं

नहीं रहा त्यौहारों पर जमघट अब
रिश्ते सभी स्वार्थ परक हो गए हैं

मैदान घर आंगन सूने सूने अब
बच्चे सभी हाईटेक हो गए हैं

बुजुर्ग परिवार की धुरी कहां अब
वृद्धाश्रम सभी गुलजार हो गए हैं

इस विकास में इंसानियत नही अब
मानवीय मूल्य सब खाक हो गए हैं

इति

इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

1 Like · 60 Views
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