मातृत्व
बच्चे तो बच्चे होते, के आपणा के गैर,
आपणा तो राजा भोज,गैर कहे सो बैर.
निज देह मोह तजे, तज भूख और प्यास,
खुद गीले सोय कर, सूखा रखे आसपास.
मन्नत मांगिए मन से, त्याग मोह लोभ.
माँ सम मातृत्व नहीं, करती नहीं क्षोभ
तुझ सम सादगी देखी नहीं कहीं ओर,
दर्शन मात्र से माते, बचे न और व छौर.
भूखे रहना पडे हरेक दिन व्रत उपवास,
लम्बी उम्र हो सुख समृद्धि के हो वास.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस