मातमी पैगाम आया सरहदों से आज फिर
मातमी पैगाम आया सरहदों से आज फिर
भर गयी आखें हमारी आसुओं से आज फिर
टुटकर बिखरे हुए अरमान सारे देख लो
माँ की लाठी खो गयी साजिसों से आज फिर
रंग जो जिवन में थी वो आज सारे खो गये
हो गयी सुनी कलाई चुड़ीयों से आज फिर
सोचकर बेटा खड़ा अपने पिता के पास में
क्यों नही भरते वो मुझको बाजुओं से आज फिर
खूँन से लथपथ हुये अपनोे के तन देखकर
डर गयी बिटिया हमारी नफरतों से आज फिर
छा गयी काली घटायें बादलो मे आज फिर
दे रहे अंतिम विदाई मुश्किलों से आज फिर