मां से प्रण
जनम दिया तुमने मुझको
कर्ज कभी क्या चुका पाऊंगा
ये प्रण है मेरा तुझसे
जीते जी साथ निभाऊंगा
धरा पर आया तेरे कारण
यूं ही जनम नहीं गंवाने वाला
ये प्रण है मेरा तुझसे
कोई सार्थक पहल कर जाऊंगा
रोते रोते आया हूं मैं तेरे
इस नायाब संसार में पर
ये प्रण है मेरा तुझसे
हंसते हंसते ही मैं जाऊंगा
उंगली पकड़ी चलना सीखा
तेरे संग मैंने जीना सीखा
ये प्रण है मेरा तुझसे
पीठ कभी तुझे ना दिखाऊंगा
त्याग कर निवाला अपना
मेरी क्षुधा को शांत किया
ये प्रण है मेरा तुझसे
दो रोटी को नहीं तरसाऊंगा
अपनी इक्षाओं को मारकर
तूने मुझको हर बार दिया
ये प्रण है मेरा तुझसे
ख्वाहिशों को पूरा करवाऊंगा
जब आई तेरे जीने की बारी
तूने जीवन अपना होम दिया
ये प्रण है मेरा तुझसे
सुख जीवन का तुझे दिलवाऊंगा
इतना पढ़ना लिखना भी मेरा
वाकई सब बेकार है
ये प्रण है मेरा तुझसे
लाज सदा इसकी बचाऊंगा
तेरी शिक्षा और संस्कार तेरे
मेरे जीवन की धरोहर है
ये प्रण है मेरा तुझसे
पथ से विमुख नहीं हो पाऊंगा।
इति।
इंजी संजय श्रीवास्तव
बीएसएनल,बालाघाट (मध्य प्रदेश)