मां बेटी और बहन, महिलाओं का शश्क्तिकरण ।
मा बहन बेटी,
सबसे पहले जगती,
अपने काम पर लगती,
झाड़ू पोंछा,
चु्ल्हा चौका,
नाश्ता हो या,
चाय पानी,
जैसी जरुरत,
वह निभानी,
खेती बाड़ी,
और बागवानी,
गाय भैंस का,
चारा पानी,
सुबह से दोपहर,
और फिर शाम,
जूझते रहना,
नहीं विश्राम,
ढलता सूरज,
आती रात,
लेकर हाथ,
तवा परात,
खाना बनाने से,
परोसने तक,
और जूठे बर्तन,
धोने तक,
फुरसत पाकर,
सोना जाकर,
किससे कहे,
अपना रोना,
जब तब मिलता ,
रहता उलाहना,
बात बात पर,
सहती ताना,
करती क्या हो,
तुम दिनभर,
पड़ी रहती हो,
यहां घर पर,
बाहर जाकर,
पडता है कमाना,
इसकी कीमत को तुमने क्या जाना,
जब तब देखो,
बक बक करना,
मुश्किल हो रहा,
सोना रहना,
सोच सोच कर हो जाती निढाल,
आशुओं की बहती धार,
सुबक सुबकती,
सो जाती थी,
और सुबह उठकर,
फिर जुट जाती,
अपनी दैनिक दिनचर्या में,
सास बहू का अदब बड़ा था,
बाल पन में मै देखा करता था,
लेकिन अब हालात बदल गये हैं,
अब बहन बेटियों के दिन बहर गये हैं,
हर घर में अब बहु बेटियों की चलती है,
सास ससुर की अहमियत घट गई है,
पतियों की हैसियत घटी है,
या यूं कहें सामंजस्यता बनी है,
बहन बेटियां बाहर जाकर कमा रही है,
पति भी घर के काम में हाथ बंटाते,
बच्चों के भविष्य को जुट जाते,
प्रतिप्रश्द्धा का दौर जो है,
शिक्षा दिक्षा पर जोर जो है,
बहुत कुछ बदलता देख लिया है,
इन सात दशकों में,
मां बेटी और बहन के,
रहन सहन में,
और,
महिलाओं के शश्क्तिकरण में!