मां गंगा से क्षमा याचना
मां गंगे जग तारिणी, पापियों की उद्दारनी
हर पाप की विमोचनी, कल्याण जीवनदायिनी
मां तुमसे क्या विनती करूं, अपराध में क्या क्या कहूं
तुमने हमें अमृत दिया, हमने जहर से भर दिया
दुनिया का कचरा उठाकर, आंचल में तेरे धर दिया
निर्मल तेरे धवल जल को, स्याह मैंने कर दिया
क्षमा हो अपराध माते, मैं पुत्र हूं बस इसी नाते
अब नहीं कचरा बहाऊं, पर्यावरण को न मिटाऊं
पूजा का निर्माल्य साबुन, न अधजली लाशें वहांऊं
कीटनाशक गंदे नाले, मां अमृत में न मिलाऊं
मां मुझे आशीष दो, मैं निर्मल तेरे पास आऊं