मां की परीक्षा
मां की परीक्षा
आज एक वाक्या क्या हुआ,
फिर वहीं अदालत, वही तोहमतो में लिपटी,
मां का चरित्र तार-तार हुआ ।
करके दो हाथ, थे वो चार,
लेकर हाथ में दांत,
कुल का दीपक जो घर आया था।।
मां का कलेजा बाहर आने को था,
न दांत दिखे, न घाव दिखे,
लड़कर, गुंडा जो बन आया था।
वही खून में उबाल
जो था दादा, पापा, चाचा में,
पोते में भी उतर आया था।।
जवानी उफान में थी, होश भी कुछ-कुछ था,
मसल कर रख दूंगा पाला एक जुनून था।
जाने कर कॉल कितनों को बेटे ने दुखड़ा उस रात सुनाया था,
दोस्तों ने भी चिंगारी को दे हवा, कर्तव्य अपना खूब निभाया था।।
कर कब प्लानिंग, गैंगअप को
समझ न पाई मां बेचारी,
तूफान से पहले वाले शांति
भांप न पाई मां बेचारी।।
कर घायल किसी मां के कलेजे के टुकड़े को मेरा सपूत घर आया था,
कर कांड मारधाड़ का वो आंचल में मेरे आकर सोया था।।
पुलिस केस अब बन सकता है, भविष्य खतरे में पड़ सकता है,
खुली आंख अब तो वह जागा था, सपना देखा जो बुरा, सच्चा हो सकता था।।
मां ठहर गई, सहम गई, जाने क्या कमी रह गई,
प्रेम, विश्वास से बनी इमारत पल में ढह गई।।
परीक्षा मां को अभी देनी बाकी थी,
सवालातों की झड़ी अभी बाकी थी।।
परवरिश पे था जो गुरूर ,सबूत देना अभी बाकी था,
पाला पोसा था जिस परिवेश में, पहचान देना अभी बाकी था।।
नई उम्मीद का मकान अभी बाकी था,
, मां का सारा सच अभी बाकी था।
मां की शिक्षा का परिणाम अभी बाकी था,
परिचायक की दीक्षा का परिमाण अभी बाकी था।।
सीमा टेलर (छिम़पीयान लम्बोर)