मां (ईजा)
ये दिन ये वक्त बिल्कुल वही है
हूबहू वही है
यूँ तो रात भर सोया मैं भी ना था
आँखे पथराई थी मेरी
हाँ लोग कहते भी है जाने वालों के लिए कौन रोता है
पर याद तो है मुझे माँ
पापा की गोद में आखिरी साँस तेरी ऐसे सोई तू जैसे
चिरकाल से सोई नही होगी तू
आ फिर से दुलार भरी आवाज़ लगा मेरी माँ
ये चार साल यूँही निकल गए माँ
बस वो आवाज़ सुनने का बड़ा मन करता है माँ
क्या हुआ रूठ गयी क्या मुझसे मेरी माँ
सुबह का समय था ना माँ
तू बता कौन सुबह सोता है माँ
माँ तो साया होता है दुनिया बोलती है
पर कौन साया की छोड़ देता है माँ
देख ना माँ बहुत कुछ बदल गया है यहां
जिस द्वार में उँगलियाँ फंस जाती थी अक्सर
वहीं पे लटका है ताला मां
तू थी तो घर था अब वीरान जंगल है माँ
ना घर याद आता है ना चाहत रही है माँ
वो आवाज़ नहीं उठती कहीं
कि मेरी गलतियों में भी मेरा साथ देती मेरी माँ
क्या करूँ माँ वो किवाड़ खोलकर
जहाँ तू नहीं है उस घर जाकर
इन चार सालों में मैं ही तो बदला हूँ माँ
ना तो वो दुनिया बदली ना वो चार लोग
मेरे लिए तो दुनिया तेरे आँचल से शुरू होकर बस दो कदम जाना भर था ना माँ
तुझे याद तो होगी मेरी शरारतें है ना माँ
अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ माँ
ना शरारत करता हूँ ना बात बढ़ाता हूँ
इन कमज़ोर कंधो में जिम्मेदारी का बोझ आ गया है माँ
तू शायद भूल गयी है तो याद दिलाऊँ
तेरे हाथ से खाने के लिए ददा से लड़ना
बस तू सिर्फ मेरी है इसके लिए झगड़ना
सभी भाई-बहनों की उम्र जोड़कर तेरी उम्र बताना
तेरी गोद में झूठमूठ का सोना
कुछ तो तुझे भी याद होगा ना माँ
आज अकेला हूँ माँ रो रहा हूँ
दुनिया की ये रौनक तेरी यादों को भी दूर ले जाती है माँ
पर देर-सवेर ढलते हुए दिन के साथ तू आ ही जाती है माँ