माँ
मित्रों सादर समर्पित है, कुंडलिया ।
पनघट पर माता खड़ी, घट भर देती रोज।
चल तू बेटी घट उठा, पनघट पर है खोज।
पनघट पर है खोज ,सखी कर रही ठिठोली।
नई नवेली नार ,नैन मटका कर बोली ।
कह प्रवीण कविराय ,ओट घूँघट की कर झट।
इंतजार में लोग ,छोड़ दे अब तू पनघट ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम