माँ
माँ
जो लाखो कष्टों को सहती और खुश रहती है सहने को ,
जो गीले तल पर खुद सोयी तुझे सूखे पे लिटाया सोने को ,
जो केवल तुझसे ही हारी ,हरा के सारी दुनिया को ,
वो माँ होती है सायक क्यों छोड़ा उसको रोने को ,
जब जब तेरी आँखों में आंसू की बूदें आई थी ,
ममता के ही सागर में वो बूंदें जा के समाई थी ,
जब जब तेरी रूहो में शूलो का साया आया था ,
माता के ही कर ने सायक उनको दूर हटाया था ,
जिसने अपना रूप बिगाड़ा तेरा रूप सवारने को ,
वो मां होती है सायक क्यों छोड़ा उसको रोने को
जय श्री सैनी ‘सायक ‘